India Blue Economy Samudrayaan Mission Manned Submersible Vehicle Will Search Up To Depth Of 6 Kilometer

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Samudrayaan Mission: भारत 2047 तक विकसित राष्ट्र बनने के लक्ष्य को लेकर आगे बढ़ रहा है. इस लक्ष्य को हासिल करने में ब्लू इकोनॉमी की बेहद महत्वपूर्ण भूमिका रहने वाली है. इसे ध्यान में रखकर भारत सरकार डीप ओशन मिशन के तहत समंदर के भीतर 6,000 मीटर की गहराई तक जाकर खोज करने के मुहिम में जुटी है. इसके लिए मिशन समुद्रयान परियोजना के तहत ऐसे वाहन को तैयार किया जा रहा है, जो अपने साथ मानव को भी इतनी गहराई तक ले जाने में सक्षम हो.

भारत की समुद्रयान परियोजना पटरी पर

केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्री किरेन रीजीजू ने 8 जून को चेन्नई में जानकारी दी कि समुद्र के भीतर खोज के लिए 6,000 मीटर की गहराई तक मानवयुक्त सबमर्सिबल वाहन भेजने का भारत का मिशन निर्धारित समय के मुताबिक आगे बढ़ रहा है. उन्होंने ये भी बताया कि समुद्रयान परियोजना के हिस्से के रूप में ये वाहन जल्द ही तैयार हो जाएगा.

भारत के इस स्वदेशी मिशन पर चेन्नई का राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान (NIOT) काम कर रहा है. इस मिशन के लिए जिस वाहन को तैयार किया जा रहा है, उसे ‘मत्स्य 6000’ सबमर्सिबल पनडुब्बी नाम दिया गया है. तैयार होने पर ये वाहन 3 लोगों को समुद्र के भीतर 6 किलोमीटर की गहराई तक ले जाने में सक्षम होगा.

मानवयुक्त सबमर्सिबल वाहन का निर्माण तेजी से

किरेन रीजीजू ने चेन्नई में विश्व महासागर दिवस पर आयोजित कार्यक्रम में शामिल होने के बाद जानकारी दी कि वाहन तैयार करने का काम समय पर पूरा कर लिया जाएगा और वे खुद वैज्ञानिकों और इंजीनियरों के साथ निर्माण की प्रगति की निगरानी करेंगे.

भारत बिना मानव के समुद्र के भीतर 7,000 मीटर की गहराई तक मिशन को अंजाम दे चुका है. अब वो 6,000 मीटर की गहराई तक मानवयुक्त मिशन को अंजाम देने की तैयारियों में जुटा है. दरअसल  पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की ओर से शुरू की गई समुद्रयान परियोजना में मानवयुक्त और मानव रहित अन्वेषण दोनों शामिल हैं.

डीप ओशन मिशन के तहत भारत चाहता है कि वो स्पेस और बाकी क्षेत्रों की तरह ही दुनिया के उन चुनिंदा देशों में शामिल हो, जिनके पास समुद्र की गहराई में भी खोज करने की अभूतपूर्व क्षमता हो. इसके लिए भारत को समुद्र के अंदर अन्वेषण में एक महत्वपूर्ण और अग्रणी भूमिका निभानी होगी और एक संतुलित पारिस्थितिकी तंत्र के लिए सतत तरीके से समुद्री संसाधनों का विकास करना होगा.

स्पेस की तरह समुद्री खोज पर भी नज़र

अब भारत किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं रहना चाहता है. जिस तरह से स्पेस अन्वेषण के क्षेत्र में भारत ने उपलब्धियों के झंडे गाड़े हैं, उसी तरह से समुद्र की गहराई में जाकर भारत शोध करना चाहता है. ये बहुत महत्वपूर्ण तथ्य है कि भारत की अंतरिक्ष यात्रा अमेरिका, रूस और चीन जैसे देशों के मुकाबले कई साल बाद शुरू हुई थी. उसके बावजूद आज भारत स्पेस इकोनॉमी में बड़ी ताकत की हैसियत रखता है. स्पेस में भारत खुद का खोज भी कर रहा है और विदेशी उपग्रहों को लॉन्च कर कमाई भी कर रहा है. अब तक भारत ने कुल 385 विदेशी उपग्रहों को लॉन्च किया है. इनमें से 353 बीते 9 साल के दौरान लॉन्च किए गए हैं. इससे 174 मिलियन डॉलर हासिल हुए हैं. इतना ही नहीं यूरोपीय सैटेलाइट की लॉन्चिंग से भी भारत ने 86 मिलियन यूरो हासिल किए हैं. अब समुद्र की गहराई में भी भारत की नजर इसी तरह की उपलब्धियों पर है.

समुद्रयान मिशन के लिए सबमर्सिबल वाहन

समुद्रयान मिशन पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने शुरू किया. इस मिशन के एक हिस्से के तौर पर भारत तीन व्यक्तियों को खोज के लिए समुद्र सतह से 6000 मीटर नीचे गहराई में भेजना चाहता है. इसके लिए ही एक वाहन ‘मत्स्य 6000’ तैयार किया जा रहा है. ये वाहन एक तरह का पनडुब्बी है, जो गहरे समुद्र में खोज के लिए वैज्ञानिक सेंसर और उपकरणों के साथ ही मानव को भी ले जाएगा. पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के अधीन आने वाला राष्ट्रीय महासागर प्रौद्योगिकी संस्थान, चेन्नई ने इस वाहन का डिजाइन तैयार किया है और अब  उसे विकसित भी कर रहा है. ‘मत्स्य 6000’ वाहन  के गहरे पानी में जाने में सक्षम संस्करण 2024 की दूसरी तिमाही तक परीक्षण के लिए तैयार हो जाएगा.

दरअसल इस वाहन के चरणबद्ध तरीके तैयार किया जा रहा है. पहले 500 मीटर तक की गहराई में जाने में सक्षम मानवयुक्त पनडुब्बी को बनाने पर काम किया गया. फिर इस वाहन का परीक्षण बंगाल की खाड़ी में सागर निधि जहाज से किया गया. भारत के पास मानव रहित रोबोटिक वाहनों और 6000 मीटर की गहराई तक जाने में सक्षम सिस्टम के विकास का तो अनुभव रहा है. उसी अनुभव के आधार पर 6000 मीटर की गहराई क्षमता के साथ स्वदेशी मानवयुक्त सबमर्सिबल वाहन बनाया जा रहा है.

मानवयुक्त इस सबमर्सिबल वाहन में 2.1 मीटर व्यास वाला टाइटेनियम मिश्र धातु का कार्मिक क्षेत्र होगा, जिसमें तीन व्यक्तियों को ले जाने की क्षमता होगी. ये एक तरह से टाइटेनियम से बनी अत्याधुनिक पनडुब्बी होगी, जिसमें सेंसर के साथ समुद्र तल से उठने वाली भूकंपीय तरंगों को पकड़ने वाले उपकरण भी होंगे. 12 कैमरों से इस वाहन की पूरी यात्रा को रिकॉर्ड किया जाएगा.इसकी सामान्य परिचालन क्षमता 12 घंटे की होगी और आपातकालीन स्थिति में परिचालन क्षमता को 96 घंटा तक किया जा सकेगा.

दुर्लभ और कीमती खनिज संसाधनों की खोज

समुद्र के नीचे 6 किमी गहराई तक जाने वाला मानव युक्त सबमर्सिबल वाहन के जरिए गहरे समुद्र में निकल, कोबाल्ट, दुर्लभ मृदा तत्व, मैंगनीज जैसे खनिज संसाधनों की खोज की जा सकती है. इस वाहन से गहराई में छिपे इन खनिजों को मानव अपनी आंखों से देश पाने में सक्षम होगा. समुद्र में 1000 से 5500 मीटर की गहराई में पाए जाने वाले पॉलिमेटेलिक मैंगनीज नोड्यूलस, गैस हाइड्रेट्स, हाइड्रो-थर्मल सल्फाइड्स और कोबाल्ट क्रस्ट जैसे निर्जीव संसाधनों की खोज में भी लाभ मिलेगा. इसके साथ ही अलग-अलग तरह के नमूनों का संग्रह किया जा सकेगा, जिनका उपयोग बाद में विश्लेषण के लिए किया जाएगा.

समुद्री खोज के क्षेत्र में बड़ी ताकत बनने पर ज़ोर

इस वाहन के समुद्र के नीचे इतनी गहराई तक जाने के वैज्ञानिक अनुसंधान और तकनीकी सशक्तिकरण के अलावा और भी फायदे मिलेंगे. इस मिशन से संपत्ति निरीक्षण, पर्यटन और समुद्री साक्षरता को बढ़ावा देने में पानी के नीचे इंजीनियरिंग इनोवेशन को अमल करने में भी मदद मिलेगी.

समुद्र में ज्यादा गहराई तक खोज के लिए सुरक्षित मानवयुक्त  वाहनों को हाई रिजोल्यूशन बैथीमेट्री, जैव विविधता का आकलन, भू-वैज्ञानिक अवलोकन, खोज गतिविधियों के साथ-साथ बचाव अभियान और इंजीनियरिंग सहायता जैसी गतिविधियों को पूरा करने में सक्षम होना जरूरी है. चीन इस दिशा में तेजी से काम कर रहा है. समुद्र के भीतर खोज के लिए चीन ने  2020 में मानवयुक्त पनडुब्बी फेंडोज़े बनाया था, जिसने 2021 में समुद्र में 11,000 मीटर की गहराई तक गोता लगाया था. 

समुद्र के अंदर मानवयुक्त मिशन चलाने की क्षमता

अक्टूबर 2021 में समुद्री मिशन को लेकर भारत दुनिया के उन चुनिंदा देशों में शामिल हो गया था, जिनके पास समुद्र के अंदर की गतिविधियों के लिए मानव युक्त मिशन चलाने की क्षमता है. भारत से पहले इस ख़ास समूह में अमेरिका, रूस, जापान, फ्रांस और चीन शामिल थे. 2021 में अक्टूबर के आखिर में भारत के पहले मानव युक्त समुद्र मिशन ‘समुद्रयान’ का शुभारंभ किया गया. समुद्रयान मिशन के लिए पांच साल का टाइमलाइन रखा गया है. इसे 2025-26 तक पूरा करना है.

ब्लू इकोनॉमी और  डीप ओशन मिशन

महासागर में खोज और ब्लू इकोनॉमी के नजरिए से डीप ओशन मिशन को केंद्र सरकार मे पांच साल के लिए मंजूरी दी थी. जून 2021 में केंद्रीय कैबिनेट से डीप ओशन मिशन को मंजूरी मिली थी. इसके लिए 4,077 करोड़ रुपये का कुल बजट रखा गया. पहले 3 वर्षों अप्रैल 2021 से मार्च 2024 को पहला चरण माना गया और इसके लिए अनुमानित लागत 2,823.4 करोड़ रुपये रखा गया. डीप ओशन मिशन का मकसद नए भारत के विकास में ब्लू इकोनॉमी के दृष्टिकोण को बढ़ावा देना है. नरेंद्र मोदी सरकार ब्लू इकोनॉमी को विकास के दस प्रमुख आयामों में से एक के रूप में मानती है.

ब्लू इकोनॉमी को लेकर देश के पास जो भी संभावित क्षमता है, उसका पूरी तरह से दोहन करने और देश की विकास गाथा में हिस्सेदार बनाने के लिए ही भारत ने   डीप ओशन मिशन शुरू किया था. ये हम सब जानते हैं कि समुद्र के नीचे छिपी हुई ब्लू वेल्थ के बारे में जानना कितना जरूरी है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लगातार दो साल 2021 और 2022 में स्वतंत्रता दिवस के अपने संबोधन में   डीप ओशन मिशन यानी गहन समुद्र अभियान की महत्ता का जिक्र किया था. 

ब्लू इकोनॉमी का भारत के लिए महत्व

किसी भी देश के लिए ब्लू इकोनॉमी का बहुत ज्यादा महत्व होता है. विश्व बैंक के मुताबिक आर्थिक विकास, बेहतर आजीविका और नौकरियों के लिए समुद्र पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य को संरक्षित करते हुए महासागर के संसाधनों का सतत उपयोग ही ब्लू इकोनॉमी है. हमारे लिए इसका महत्व इस नजरिए से भी बढ़ जाता है कि भारत के पास एक अनूठी समुद्री स्थिति है. भारत के पास 1,382 द्वीपों  के साथ 7517 किलोमीटर लंबी तटरेखा है. ये तटरेखा 9 तटीय राज्यों में फैली हुई है. यहां के 12 प्रमुख और 200 छोटे-छोटे बंदरगाह देश के 95% व्यापार में मददगार हैं. ब्लू इकोनॉमी का देश के जीडीपी में करीब 4% का योगदान है. इस तरह से भारत के पास दुनिया की सबसे विस्तृत तटरेखाओं में से एक है. भारत का विशेष आर्थिक क्षेत्र (EEZ) 2.2 मिलियन वर्ग किलोमीटर से ज्यादा फैला हुआ है. जितनी बड़ी तटरेखा और बड़ी संख्या में seashores हैं, उनको देखते हुए भारत के लिए महासागर आधारित पर्यटन की गुंजाइश काफी बढ़ जाती है.

फिशिंग, ग्रीन एनर्जी और ऑफशोर माइनिंग

भारत के लिए ब्लू इकोनॉमी में  शिपिंग, पर्यटन, मत्स्य पालन और अपतटीय तेल और गैस अन्वेषण समेत कई क्षेत्र शामिल हैं. अब समुद्रयान मिशन के तहत भारत ने इसमें दुर्लभ और कीमती खनिज संसाधनों की खोज को भी जोड़ दिया है. फिशिंग इंडस्ट्री का ग्रोथ रेट 2014-15 से डबल डिजिट में रहा है. इस अवधि से फिशिंग इंडस्ट्री ने 10.87% औसत वार्षिक वृद्धि हासिल की है. 2021-22 में 161.87 लाख टन का रिकॉर्ड मछली उत्पादन हुआ. भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा मछली उत्पादक देश है और हमारे पास 2,50,000 मछली पकड़ने वाली नौकाओं का बेड़ा है. भारत की तटीय अर्थव्यवस्था पर 4 मिलियन से  ज्यादा मछुआरे और कई तटीय शहर निर्भर हैं.

भारत ग्रीन एनर्जी की दिशा में तेजी से कदम बढ़ा रहा है और इसमें ब्लू इकोनॉमी की भी बड़ी भूमिका रहने वाली है. नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय ने संभावित 12,455 मेगावाट ज्वारीय ऊर्जा और 40,000 मेगावाट तरंग ऊर्जा की पहचान की है. भारत में अपतटीय (offshore) खनन उद्योग के लिए भी काफी संभावनाएं हैं. इसी को देखते हुए डीप ओशन मिशन की घोषणा की गई थी. इसके तहत इंडियन ओशन में  तांबा, निकेल, कोबाल्ट और मैंगनीज जैसे धातुओं के खनन की योजना है, जिसकी अनुमानित कीमत 110 बिलियन डॉलर है.

पूरी दुनिया के लिए ब्लू इकोनॉमी कितना महत्वपूर्ण है, ये इससे पता चलता है कि विश्व व्यापार का 80% समुद्र के माध्यम से होता है. दुनिया की 40% आबादी तटीय क्षेत्रों के पास रहती है. साथ ही दुनिया में 3 अरब से ज्यादा लोग अपनी आजीविका के लिए महासागरों का उपयोग करते हैं. 
 
ब्लू इकोनॉमी से जुड़ी चुनौतियां

भारत के ब्लू इकोनॉमी को लेकर कुछ चुनौतियां भी हैं. इनमें कई तटीय इलाकों में  बंदरगाहों, एयरपोर्ट और अन्य बुनियादी ढांचे की कमी से जुड़ा पहलू शामिल हैं. इनके अभाव में इन इलाकों में आर्थिक गतिविधियों का विकास और विस्तार करना मुश्किल हो जाता है. इसके साथ ही ओवरफिशिंग और समुद्री प्रदूषण से जुड़ी चुनौतियां भी हैं. साथ ही साथ जलवायु परिवर्तन से जुड़े मुद्दे जैसे समुद्री स्तर का बढ़ना भी ऐसा पहलू है जिस पर ध्यान देने की जरूरत है. इंडो-पैसिफिक रीजन में चीन का आक्रामक और विस्तारवादी रुख भी भारत के ब्लू इकोनॉमी के लिहाज से खतरनाक है. इस चुनौती से निपटने पर भी फोकस करते रहना होगा. देश के ज्यादातर तेल और गैस की आपूर्ति समुद्र के जरिए ही की जाती है. इस वजह से हिंद महासागर क्षेत्र भारत के आर्थिक विकास के लिए काफी महत्वपूर्ण है.

इसकी भी पूरी गुंजाइश है कि जिस तरह से पिछले कुछ सालों में सरकार ने इस दिशा में ध्यान दिया है, उससे अगले कुछ वर्षों में देश की ब्लू इकोनॉमी में काफी वृद्धि होने की संभावना है. कुल मिलाकर डीप ओशन मिशन के तहत समुद्रयान परियोजना के जरिए अब वो दिन जल्द आने वाला है जब भारत समुद्र की गहराइयों में छिपे खनिजों के बारे में खुद पता लगा सकेगा. इससे हमारी ब्लू इकोनॉमी में नए विकल्पों के लिए भी रास्ता खुलेगा.

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Nilesh Desai
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