Lok Sabha Elections In India: How Many BJP Inside Congress? Know Political Meaning ‘Jai Shri Ram’ Mention In Leaders Post

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Himachal Politics: कहते हैं कि राम सबके हैं और राम सब में हैं. हों भी क्यों न? आखिर भगवान श्रीराम का पात्र और चरित्र ही ऐसा था. लेकिन, देश की राजनीति में भगवान श्री राम के प्रभाव से हर कोई वाकिफ है. इन दिनों देश में भी भगवान राम के दो रूप हैं. एक नीति वाले राम और दूसरे राजनीति वाले. नीति वाले राम ने तो अपने जीवन में वह सब कुछ न्योछावर कर दिया, जिसके लिए आम व्यक्ति जीवन भर संघर्ष करता है और राजनीति वाले राम को तो हर कोई अपना बताने में लगा हुआ है.

जय श्री राम के नारे का उद्घोष 

यूं तो जय श्रीराम के नारे पर किसी सियासी दल का अधिकार नहीं, लेकिन यह नारा अमूमन दक्षिणपंथी विचारधारा वाली भारतीय जनता पार्टी के साथ ही जोड़कर देखा जाता है. भाजपा की कोई रैली हो या विपक्ष के तौर पर होने वाला कोई प्रदर्शन, हर जगह जय श्रीराम के नारे का उद्घोष रहता है. कांग्रेस की रैलियों और प्रदर्शन में यह नारा बमुश्किल ही कभी सुना जाता हो. ऐसे में जब सरकार का कोई मंत्री लगातार जय श्रीराम के नारे का उद्घोष करता रहे, तो चर्चा होना तो लाजमी ही है. हिमाचल प्रदेश सरकार में लोक निर्माण मंत्री विक्रमादित्य सिंह लगातार भगवा पताकाओं के साथ जय श्रीराम के नारे का उद्घोष करते हैं. विक्रमादित्य सिंह का तर्क भी यही है कि जय श्रीराम के नारे पर किसी पार्टी विशेष का अधिकार नहीं. वे भी हिंदू हैं और देवभूमि से होने के नाते सीधे देवी-देवताओं से जुड़े हैं. पिता वीरभद्र सिंह भी हमेशा हिंदू हित की ही बात करते रहे.

सॉफ्ट हिंदुत्व के साथ चुनाव लड़ेगी कांग्रेस?

इस सबके बीच सवाल यह है कि क्या भारतीय जनता पार्टी के साथ कांग्रेस को भी सॉफ्ट हिंदुत्व के साथ चुनावी मैदान में उतरना होगा? हालांकि हिमाचल प्रदेश की राजनीति में ध्रुवीकरण कभी हावी नहीं रहा, लेकिन बावजूद इसके कांग्रेस भी अब इसी कोशिश में ही नजर आ रही है. कांग्रेस के कई नेता हिमाचल प्रदेश को ट्रेंड सेंटर बता चुके हैं. पहाड़ों से निकली सियासी हवा अन्य राज्यों में भी कांग्रेस के लिए प्रभावी साबित हो रही है. ऐसे में कांग्रेस की ओर से हिमाचल प्रदेश में सेट किए जाने वाला ट्रेंड कांग्रेस के लिहाज से भी पूरे देश के लिए लाभकारी साबित होता है.

कांग्रेस में कितनी है भाजपा?

देश में होने वाले लोकसभा चुनाव को एक साल से भी कम का वक्त रह गया है. ऐसे में समय-समय पर कांग्रेस सरकार के सत्ता में आने के बाद से उपजे असंतोष की चर्चाएं भी होती रहती हैं. कांग्रेस सरकार में असंतोष के कई बड़े कारण माने जा रहे हैं. इसमें सबसे बड़ा कारण मंत्रिमंडल विस्तार का लगातार टलते जाना है. हिमाचल प्रदेश मंत्रिमंडल में अभी तीन पद खाली पड़े हुए हैं. संभावित विधायकों के साथ उनके समर्थकों को लंबे समय से पदों को भरने का इंतजार है. इसके अलावा सत्ता परिवर्तन के बाद अफसरशाही में बड़े स्तर पर परिवर्तन न होने के चलते भी कुछ मंत्री और विधायक नाराज हैं. जिन अफसरों के खिलाफ विपक्ष में रहते हुए कांग्रेस के नेता मोर्चा खोलते रहे, आज भी वही अफसर प्रदेश चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं.

समय पर असंतोष शांत नहीं हुआ तो…

यही नहीं, एक आला अधिकारी से तो मंत्री और विधायक इतने परेशान हैं कि कई बार मुख्यमंत्री को भी इस बारे में शिकायत कर चुके हैं. यह आला अधिकारी अपने कमरे में मंत्रियों और विधायकों को कुर्सी पर बैठने तक के लिए नहीं कहते. सुक्खू मंत्रिमंडल के सदस्य के बेटे और पूर्व विधायक तो व्यवस्था परिवर्तन के बाद भी अवस्था परिवर्तन न होने की बात खुले मंच से कह चुके हैं. मंत्रियों और विधायकों के कहने पर भी समर्थकों की ट्रांसफर न होना भी असंतोष का बड़ा कारण बन रहा है. कहा जाता है कि राजनीति में टाइमिंग का अत्यधिक महत्व होता है. ऐसे में यदि समय रहते इस असंतोष को शांत नहीं किया गया, तो आने वाला वक्त कांग्रेस को निश्चित तौर पर भारी पड़ सकता है. प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले जिस तरह कांग्रेस के नेताओं ने पार्टी छोड़ भाजपा का दामन थामा, उसकी चर्चाएं एक बार फिर जोरों पर है. भले ही मिशन लोटस को कांग्रेस नेता बोगस करार दे रहे हों, लेकिन यह हर कोई जानता है कि हिमाचल प्रदेश की राजनीति में भी कई अजित पवार और सुनील जाखड़ मौजूद हैं.


Nilesh Desai
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