स्वाधीन भारत के वास्तविक पहले प्रधानमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल।

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‘आज एक ऐसा भारत अस्तित्व में है जिसके बारे में सोचा और बात की जा सकती है, इसकी सफलता सरदार पटेल की कूटनीति और मजबूत प्रशासनिक कौशल के हिस्से जाता है।’ ये शब्द हैं भारत के पूर्व राष्ट्रपति स्व. राजेंद्र प्रसाद जी के। १३ मई १९५९ को उन्होंने अपनी डायरी में यह लिखा था। उन्होंने आगे कहा, ‘फिर भी हम इस मामले में सरदार पटेल की उपेक्षा कर रहे हैं।’

सरदार वल्लभभाई पटेल जी की उपेक्षा कोई नई बात नहीं है। सरदार पटेल जी का व्यक्तित्व और कृतित्व इतना विशाल था कि उनके कृतित्व के साथ न्याय करना आसान नहीं है। (उन्हें वास्तविक न्याय दिलाने में, कई लोगों ने अपने खातों में जो न्याय जमा कर लिया है, वह चोरी पकड़ी जाएगी।) वैसे भी उपेक्षा और अन्याय सरदार के विशाल भालप्रदेश का अभिन्न अंग ही था। सरदार पटेल, जिन्होंने बहुत ही कम समय में अनगिनत टुकड़ों में बिखरे भारत को जोड़कर अखंड किया, जिन्होंने एक धूर्त लोमड़ी जैसे अंग्रेजों की चालों का शीतलता से मुकाबला किया और भारत को स्वाधीनता दिलाने में अहम भूमिका निभाई, जिन्होंने बुरी मंशा रखने वाले, कट्टरपंथी तत्कालीन जनूनी मुस्लिम नेताओं की कई धोखेबाज मांगों को खारिज कर दिया एसे हमारे सरदार पटेल हजारों वर्षो में नसीब से ही कोई प्रजा व राष्ट्र को मिले एसे महामानव थे।

इस देश में जब भी कुछ होता है तो हर किसी की जुबान पर एक ही बात होती है ‘सरदार साहब आज होते तो…?’

पाकिस्तान भारत की सीमा में घुसकर भारतीय सैनिकों को मारता है। हर कुछ दिनों में पाकिस्तान प्रेरित आतंकवादी कश्मीर में मौतका तांडव करते है। चीन अरुणाचल से लेकर डोकलाम तक अपना बेस बनाने की कोशिश कर रहा है। भारत इन सभी करस्तानों के खिलाफ सख्ताई से काम क्यों नहीं ले रहा है, यह सवाल हर किसी के मन में है। सरदार साहब को शुरू से ही चीन पर भरोसा नहीं था। उन्होंने भारत सरकार को चीन से सावधान रहने की चेतावनी दी थी, लेकिन हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू ने हिन्दी चीनी भाई-भाई का दोगला नारा देते हुए चीन पर बहुत अधिक भरोसा किया और १९६२ में चीन ने भारत पर हमला कर दिया और सैकड़ों वर्ग मील भारतीय क्षेत्र पर कब्जा कर लिया।

सरदार साहब कश्मीर को लेकर भी स्पष्ट थे। भारत सरकार अंधेरे में रही और पाकिस्तान की सेना आधे कश्मीर में घुस गई। सरदार साहब ने वीटो का प्रयोग कर भारतीय सेना को कश्मीर में भेजा और आधा कश्मीर बचा लिया।

स्वाधीनता के समय कश्मीर का मसला पेचीदा था। शेख अब्दुल्ला के खास दोस्त होने के नाते नेहरू कश्मीर मुद्दे को अपने तक ही सीमित रखना चाहते थे। भारत के विभाजन के बाद जब पाकिस्तानी सेना ने कश्मीर पर आक्रमण किया तो नेहरू कोई सैन्य कार्रवाई नहीं करना चाहते थे। उस वक्त केंद्रीय कैबिनेट भी कश्मीर को बचाने के लिए असमंजस में थी। सेना के जनरल बुकर भी कहते थे, ‘हमारे पास संसाधन कम हैं।’ उसी वक्त बिना एक पल की देरी किए सरदार वल्लभभाई पटेल, जो उस समय देश के नायाब प्रधानमंत्री और गृह मंत्री थे, तुरंत खड़े हो गए और बोले, ‘चिंता मत कीजिए। कश्मीर में सैनिकों को हवाई मार्ग से भेजने की तैयारी करें। और सरदार साहब की बात सुनकर ब्रिटिश कमांडर इन चीफ भी जोश में आ गये। सेना भेजी गई और आधा कश्मीर बचा लिया गया। अगर सरदार साहब ने तुरंत फैसला न लिया होता तो पाकिस्तान कश्मीर और श्रीनगर का बाकी हिस्सा भी अपने कब्जे में ले लेता।

३ जुलाई १९४८ को सरदार साहब ने कहा था, ‘भारत को कश्मीर को लेकर यूएनओ में नहीं जाना चाहिए था। हालाँकि, जाने के बाद भी, अगर हमने सक्रिय कदम उठाए होते, तो पूरा मामला बहुत जल्दी और हमारे दृष्टिकोण से हल हो गया होता।’ उन्होंने साफ शब्दों में कहा था, ‘आज कश्मीर में जिस तरह की लड़ाई चल रही है, उससे बेहतर होगा कि खुला युद्ध हो।’

सरदार साहब जैसी प्रतिभाएं सदियों में एक बार पैदा होती हैं। यहां तक ​​कि गांधीजी को भी कहना पड़ा, ‘अगर सरदार मुझसे नहीं मिले होते तो जो काम हुआ वह नहीं हो पाता।’ नेहरू ने कहा था, ‘सरदार वल्लभभाई का जीवन एक महान गाथा है… उन्हें इतिहास के कई पहलुओं में याद किया जाएगा।’

 लॉर्ड माउंटबेटन ने सरदार साहब के बारे में कहा है, ‘इस आदमी(सरदार) का दिल बहुत उर्मिशिल और सहानुभूतिपूर्ण है। अगर एक बार हम उसके दिल की गहराई में उतर जाएं तो वह एक सच्चा दोस्त, गर्मजोशी भरा और प्यार करने वाला लगता है।’

भारत की स्वाधीनता के बाद पूरी कोंग्रेस कमिटी ने सरदार साहब को देश के प्रथम वडा प्रधान बनाने का फैसला दिया। लेकिन गांधी जी के कहने पर नेहरू का पूरा मान-सम्मान बनाये रखने वडा प्रधान के पद को जाने दिया। एक बार हैदराबाद के निज़ाम तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू के स्वागत के लिए हवाई अड्डे पर नहीं गए। तब सरदार साहब को इस बात का पता चला तो उन्होंने निज़ाम से कहा: ‘निज़ाम से कहो कि वह अपने दिमाग से राई निकाल दे!’  

अगर आज सरदार साहब होते तो क्या आज भारत की सीमा में बार-बार घुसने वाले चीन की दादागिरी के आगे घुटने टेक देते? हर कुछ दिन में एक भारतीय सैनिक को मारने वाले पाकिस्तान से उन्होंने किस भाषा में बात की होती ? मंदिर या मस्जिद की राजनीति करते ? परिवारवाद चलाते हैं क्या ? ढेर सारा पैसा जुटाने के लिए राजनीति का इस्तेमाल करते क्या ? धर्म,  जाति या वर्ण आधारित राजनीति चलने देते क्या ?

सरदार पटेल के विचारों के संदर्भ से आज जो स्थिति उत्पन्न हुई है, उसके अंतर या भेद को समझना बहुत जरूरी है। पटेल साहब कहते थे कि यह हमारे देश के प्रत्येक नागरिक की जिम्मेदारी है कि वह महसूस करे कि उसका देश स्वाधीन है। और इसकी स्वाधीनता की रक्षा करना उसका नैतिक कर्तव्य है। हर भारतीय को अब यह भूलना होगा कि वह एक राजपूत है, एक सिख है, एक जाट है, संक्षेप में देश में रहने वाली सभी जातियों और वर्गों को सब प्रकार के भेदभाव भूलकर, उसे याद रखना चाहिए कि वह सबसे पहले एक भारतीय है और इस देश में हर किसी के लिए अधिकार समान हैं लेकिन साथ–साथ उनकी जिम्मेदारियां भी हैं। ऐसे ऊंचे विचारों का पालन करना तो ठीक, अपितु सोचने की शक्ति भी चली गई है। जिसके सामने सरदार साहब सहित कई महापुरुषों ने लड़ाई लड़ी थी, आज जहां भी देखो, अंग्रेजों की “फूट डालो और राज करो” नीति से वही जाति, धर्म, वर्ग के नाम पर अपने अपने अखाड़े चलाए जा रहे है।

ऐसा नहीं लगता कि हम उनकी की सारी मेहनत और बलिदान को एक गहरे कुएं में धकेल रहे हैं ? जिनके नाम पर हम या हमारे नेता केवल सरदार या अन्य महापुरुषों के फोटो, बैनर और उनके नारों के साथ मार्केटिंग कर अपना निजी स्वार्थ और लालच पूरा कर रहे हैं। एक भी उदाहरण देखने को नहीं मिलता कि उनके विचारों पर अमल किया गया हो या उनके विचारों को घर-घर तक पहुंचाया जाए। आज के युवाओं को यह करना होगा और जल्दी करना होगा, तभी सरदार पटेल जी की आत्मा को शांति मिलेगी और हर देशवासी को सरदार पटेल जी पर गर्व होगा।      

सरदार पटेल ने यहां तक ​​कहा था कि भले ही हम हजारों की संपत्ति खो दें और हमारे जीवन का बलिदान हो जाए, हमें हमेशा मुस्कुराना चाहिए और ईश्वर और सत्य पर विश्वास करते हुए खुश रहना चाहिए। सिर्फ बाते करकर या नेतागिरी तक सीमित न रखते हुए, सही अर्थ में सरदार के सही विचारों को लोगों तक पाहुचाने का बीड़ा हर युवा को उठाना होगा। प्रत्येक नागरिक को लालची, भ्रष्ट, स्वार्थी नेताओं और देश को बर्बाद करने वाले कारकों को समाप्त करते हुए सरदार पटेल जी के सपनों को जीवित रखने के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार रहना होगा। जिनका नाम सुनते ही आज हर कोई नागरिक एक अजोड़ प्रतिभा के प्रति गर्व और सम्मान की अनुभूति करता है एसे हम सभी के प्रेरणास्रोत, अखंड भारत के निर्माता, भारत रत्न और स्वाधीन भारत के वास्तविक पहले प्रधानमंत्री “श्री सरदार वल्लभभाई पटेल जी” की आज जयंती पर आइए हम प्रण ले कि, पटेल साहब के विचार को जीवंत रखते हुए हम जात-पात, वर्ण की सीमाओं से ऊपर उठकर एकजुट होकर उनके विचारों वाला भारत बनाने का कार्य करेंगे…!!!

Hiren Gajera
Hiren Gajera
Writer, Social Worker and Program Manager under Project of Health and family welfare department- Gujarat Gov.

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