<p type="text-align: justify;">भारतीय अर्थव्यवस्था पर एक नया खतरा मंडरा रहा है. यह "गुलाम" श्रमिकों का एक शोषित वर्ग है. इसे नीति आयोग ने गिग वर्कर के रूप में सराहा है. ये कम वेतन वाले मजदूर, भारत में सबसे तेजी से बढ़ने वाला वर्ग है, जो एक चक्र में फंस गया हैं. शोषण के खिलाफ आवाज उठाने का मतलब है अपनी आजीविका को जोखिम में डालना और परिवारों को भुखमरी की ओर धकेलना.</p>
<p type="text-align: justify;">कॉम्पिटिशन कमीशन (Competiton Commission of India) – CCI – ने सुप्रीम कोर्ट से आग्रह किया कि 24 निर्णयों के उल्लंघन पर बहुराष्ट्रीय कम्पनियों पर कार्रवाई हो. विडंबना है कि नीति आयोग गिग इकॉनोमी का जश्न मनाता है- जिसमें स्थिर, स्थायी नौकरियों की तुलना में अल्पकालिक अनुबंध और फ्रीलांस काम शामिल हैं. श्रमिकों के लिए यह अथक तनाव, अप्रत्याशित कार्यक्रम और बुनियादी सामाजिक सुरक्षा की कमी लाता है. जबकि कंपनियों को लागत-मुक्त, अनियमित श्रम शक्ति से लाभ होता है, लेकिन मानवीय लागत चौंका देनेवाली है. </p>
<p type="text-align: justify;">बांग्लादेश की हसीना सरकार के पतन, ऐसे आर्थिक मॉडल के खतरों की ओर इशारा करते हैं, क्योंकि बेरोजगार युवाओं में बढ़ते गुस्से ने ही ऐसी स्थित पैदा की. गिग से श्रमिकों को नुकसान हैं, लेकिन कंपनियों और उनके शेयरधारकों के लिए यह शुद्ध लाभ है. "गिग" शब्द एक ऐसी नौकरी को खा जाता है जो एक स्वल्प्कालिक है. परंपरागत रूप से, इस शब्द का इस्तेमाल संगीतकारों द्वारा अलग-अलग प्रदर्शन के लिए उपयोग होता था. </p>
<p type="text-align: justify;">कौन नहीं जानता कि दुनियाभर में सदियों से संगीतकारों का शोषण किया जाता रहा है. उन्हें वेतन या रॉयल्टी नहीं दी जाती है. कथित तौर पर इस चूहे दौड़ में बने रहने के लिए अनेकों गर्भपात तमाम संगीकारों के लिए आम हैं. </p>
<p type="text-align: justify;">नीति आयोग का अनुमान है कि भारत में गिग श्रमिक जीडीपी का 1.5 प्रतिशत योगदान देता है. यह 2029-30 तक बढ़कर 2.35 से 3 करोड़ तक पहुंच जाएगा, जो 2020-21 में 77 लाख था. यह 200 प्रतिशत की वृद्धि है. यह श्रमिक-विरोधी प्रणाली है और कंपनियों की जिम्मेदारियां घटाकर मुनाफा बढ़ाता है. आयोग यह स्वीकार करता है कि गिग सबसे खराब प्रकार की नौकरियां हैं, फिर भी इसे बढ़ावा देता है. आयोग खुद कहता है कि इसमें बीमारी की छुट्टी, स्वास्थ्य और दुर्घटना बीमा, वृद्धावस्था सहायता और पेंशन जैसी सुविधाओं का अभाव है. </p>
<p type="text-align: justify;">नीति आयोग गिग इकॉनमी को एक ‘मुक्त’ (अशोषक) बाजार प्रणाली के रूप में प्रस्तुत करता है, जिसमें अस्थायी पद सामान्य हैं और स्वतंत्र श्रमिकों को अल्पकालिक काम के लिए नियुक्त करते हैं. आयोग का कहना है कि यह "पारंपरिक आर्थिक संबंधों के क्षरण, नौकरी की सुरक्षा की कमी, मजदूरी की अनियमितता और श्रमिकों के लिए अनिश्चित रोजगार स्थिति" सामान्य है.</p>
<p type="text-align: justify;">इससे पहले, आयोग ने श्रम मंत्रालय को श्रम कानूनों के साथ गंभीर समझौता करने और 44 कानूनों को चार श्रम संहिताओं में बदलने के लिए प्रेरित किया, जिससे श्रमिकों की परेशानियाँ और बढ़ गईं और निवारण मुश्किल हो गया. अमेज़ॅन, फ्लिपकार्ट, ब्लिंकिट, उबर, ओला जैसे संगठन वैश्विक स्तर पर पीड़ा का सबसे बड़ा कारण हैं. एक ऐसी प्रणाली जिसे अमेरिका के भावी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और टेस्ला के सीईओ एलन मस्क कार्य वीजा में कटौती करके बढ़ावा देते हैं. </p>
<p type="text-align: justify;">जैसे-जैसे दुनिया की बहुराष्ट्रीय कंपनियां नए रास्ते पर आगे बढ़ रही हैं, भारत में काम के असुरक्षित तरीके इजाद किये जा रहे है और सरकार मूकदर्शक बनी हुई है. नवीनतम Periodical Labour Force Survey (पीएलएफएस) रिपोर्ट के अनुसार, 15-29 वर्ष की आयु के युवाओं के लिए सामान्य स्थिति पर अनुमानित बेरोजगारी दर क्रमशः 2020-21, 2021-22 और 2022-23 के दौरान 12.9 प्रतिशत, 12.4 प्रतिशत और 10 प्रतिशत थी. </p>
<p type="text-align: justify;">2016 में कुल बेरोजगार 44.85 मिलियन या 4.48 करोड़ थे, जो कि 2014 में 48.26 मिलियन या 4.82 करोड़ था. आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, गिग इकॉनमी ज्यादातर मामलों में एक श्रमिक को लगभग 15000 रुपये प्रति माह की आय देती है. मुद्रास्फीति 6 से 9 प्रतिशत तक बढ़ गई है और जीडीपी वृद्धि 5.4 प्रतिशत तक गिर गई है. कृषि में कुल रोजगार में गिरावट आई है और निर्माण क्षेत्र में मामूली वृद्धि हुई है. </p>
<p type="text-align: justify;">क्रेडिट मार्केट रेटिंग एजेंसी इंडिया रेटिंग्स ने 9 जुलाई, 2024 को कहा कि देश में 63 लाख अनौपचारिक क्षेत्र के उद्यम बंद हो गए, जिसके परिणामस्वरूप 2015-16 और 2022-23 के बीच 1.6 करोड़ नौकरियों का नुकसान हुआ. रिपोर्ट ने नोटबंदी, GST और कोविड-19 महामारी के कारण भारत की अर्थव्यवस्था को लगे झटकों को मंदी के लिए जिम्मेदार ठहराया. </p>
<p type="text-align: justify;">आईटी क्षेत्र में मंदी है और शायद डोनाल्ड ट्रम्प के सत्ता में आने के बाद भारतीयों के लिए अमेरिका भारत के आईटी परियोजनाओं पर कटौती कर सकता है. यूपीए-1 और यूपीए-2 ने बेरोज़गारी रहित विकास की प्रक्रिया शुरू की. </p>
<p type="text-align: justify;">एक दशक या उससे अधिक आईटी क्षेत्र में काम करने वाले तमाम लोग 40 की उम्र में उसी काम को गिग वर्कर के तरह कर रहें हैं. पीएलएफएस ने दिखाया कि 2017-’18 और 2022-’23 के बीच, वेतनभोगी नौकरियों में कार्यरत भारतीयों की हिस्सेदारी में गिरावट आई है और “स्वरोजगार” – यानि गिग – में वृद्धि हुई है. <br />गिग इकॉनोमी के लिए, नवंबर 2024 के अमरीका के जॉर्जिया कोर्ट का फैसला इस बात को रेखांकित करता है कि अमेज़ॅन डिजिटल नियंत्रण – चाहे ऐप, प्लेटफ़ॉर्म या एल्गोरिदम द्वारा – सभी श्रमिक कानूनों के धज्जिया उड़ा रहा है. </p>
<p type="text-align: justify;">एक अन्य मामले में, कैलिफ़ोर्निया न्यायालय ने श्रमिकों को लगातार किए जाने वाले कार्यों के बारे में 60,000 बार लिखित में सूचित न देने के लिए अमेज़न पर 5.9 मिलियन डॉलर का जुर्माना लगाया. भारत में मदुरै जिला उपभोक्ता आयोग ने फोन के खरीदारों को मानसिक पीड़ा पहुंचाने के लिए अमेज़न, सैमसंग और डिवाइन इंडिया को 2.1 लाख रुपये का मुआवजा देने को कहा. </p>
<p type="text-align: justify;">भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) ने 9 दिसंबर, 2024 को Amazon और Flipkart के खिलाफ लंबित 24 अदालती मामलों के समाधान में तेजी लाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया. विशेष रूप से ज़ोमैटो के स्वामित्व वाले ब्लिंकिट और ज़ेप्टो भारत में ई-कॉमर्स तेजी से बढ़ा रहा है. स्विगी, इंस्टामार्ट, उबर या ओला प्रति असाइनमेंट 40 प्रतिशत या उससे अधिक की उच्च कटौती लेते हैं. इससे श्रमिकों में असंतोष बढ़ रहा है. <br />अनुचित व्यापार प्रथाओं और डेटा गोपनीयता के बारे में चिंताओं को दूर करने के लिए कोई मजबूत कानून नहीं है. सामाजिक सुरक्षा पर भारतीय संहिता, 2020 गिग श्रमिकों को एक अलग श्रेणी के रूप में मान्यता देती है, लेकिन कानूनी अनिवार्यता, सार्वभौमिक कवरेज और जवाबदेही तंत्र की कमी के लिए इसकी आलोचना की गई है.<br />अमेरिका गिग श्रमिकों के लिए सबसे बड़ा वैश्विक बाजार है, लेकिन भारत, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया और ब्राजील भी पीछे नहीं है. अंतर्राष्ट्रीय विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका में अवैध अप्रवासी जबरन श्रम के जाल में फंस जाते हैं जिससे अमेरिकी अर्थव्यवस्था को उछाल मिलता है. कृषि उद्योग सबसे अधिक परेशान करने वाले उद्योगों में से एक है जहां अमेरिका में जबरन श्रम बड़े पैमाने पर होता है. यह मानता है कि सस्ते श्रम के लिए गिग को जानबूझकर बढ़ावा दिया जा रहा है. भारत को नए रोजगार परिदृश्य में उचित वेतन के लिए मजबूत वैश्विक नौकरी कोड के लिए ILO और अन्य मंचों पर कदम उठाना चाहिए.</p>
<p type="text-align: justify;"><sturdy>[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. यह ज़रूरी नहीं है कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही ज़िम्मेदार है.]</sturdy></p>
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