<p model="text-align: justify;"><sturdy>Chandrayaan-3 Moon Landing:</sturdy> भारत ने 2019 में चांद पर एक अंतरिक्षयान उतारने की कोशिश की और वह चांद की बंजर सतह पर मलबे की एक किलोमीटर लंबी लाइन ही खींच सका. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) ने अब जीत के साथ वापसी की है. चंद्रयान-3 का लैंडर पृथ्वी के उपग्रह चांद के दक्षिणी ध्रुव के पास की सतह को छूने में कामयाब रहा.</p>
<p model="text-align: justify;">भारत की इस सफलता से कुछ ही दिन पहले रूस को तब असफलता मिली, जब उसके लूना-25 ने पास ही के क्षेत्र पर उतरने की कोशिश की, लेकिन वह चांद की सतह से टकराकर क्रैश हो गया. चांद पर सॉफ्ट लैंडिंग की पहली सफलता के करीब 60 साल बाद अंतरिक्षयान मिशन अब भी मुश्किल और खतरनाक हैं. विशेष रूप से चंद्र मिशन सिक्का उछालने की तरह हैं. हमने हाल ही के कुछ सालों में कई बड़े-बड़े देशों को असफल होते देखा है.</p>
<p model="text-align: justify;"><sturdy>चार देश ही चांद की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग कर पाए हैं</sturdy><br />सबसे पहले पूर्व सोवियत संघ ने यह सफलता हासिल की थी. लूना 9 मिशन लगभग 60 साल पहले फरवरी 1966 में चांद पर सुरक्षित रूप से उतरा था. अमेरिका ने कुछ महीनों बाद जून 1996 में ‘सर्वेयर 1’ मिशन के जरिए सफलता हासिल की. इसके बाद चीन 2013 में ‘चांग’ई 3’ मिशन की सफलता के साथ इस समूह में शामिल हो गया और अब भारत भी चंद्रयान-3 के साथ चांद पर पहुंच गया है. जापान, संयुक्त अरब अमीरात, इजराइल, रूस, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, लक्जमबर्ग, दक्षिण कोरिया और इटली के मिशन असफल रहे.</p>
<p model="text-align: justify;"><sturdy>60 साल के अनुभव के बाद भी रूस हुआ असफल</sturdy><br />रूस की अंतरिक्ष एजेंसी ‘रॉसकॉसमॉस’ ने 19 अगस्त 2023 को बताया, लूना 25 अंतरिक्ष यान के साथ संपर्क टूट गया है. इसके बाद 20 अगस्त को यान से संपर्क करने के प्रयास असफल रहे. रॉसकॉसमॉस को बाद में पता चला कि लूना 25 क्रैश हो गया है. पूर्ववर्ती सोवियत संघ से लेकर आधुनिक रूस तक 60 साल से भी अधिक के अनुभव के बावजूद यह मिशन असफल हो गया. हमें नहीं पता कि वास्तव में क्या हुआ, लेकिन रूस के मौजूदा हालात इसका एक कारण हो सकते है. यूक्रेन के साथ जारी युद्ध के कारण रूस में तनाव का माहौल है और संसाधनों की कमी है.</p>
<p model="text-align: justify;">इजराइल का बेरेशीट लैंडर भी अप्रैल 2019 में क्रैश हो गया था. सितंबर 2019 में भारत ने भी चांद की सतह पर अपना लैंडर ‘विक्रम’ भेजा था, लेकिन वह उतरते समय क्रैश हो गया था. नासा ने बाद में अपने ‘लूनर रीकानसन्स ऑर्बिटर’ द्वारा ली गई एक तस्वीर जारी की, जिसमें विक्रम लैंडर का मलबा कई किलोमीटर तक फैले लगभग दो दर्जन स्थानों पर बिखरा हुआ नजर आ रहा था.</p>
<p model="text-align: justify;"><sturdy>अंतरिक्ष अब भी जोखिम भरा है</sturdy><br />अंतरिक्ष मिशन एक जोखिम भरा काम है. केवल 50 प्रतिशत से अधिक चांद के मिशन सफल होते हैं. यहां तक कि पृथ्वी की कक्षा में छोटे उपग्रह मिशन भी शत-प्रतिशत सफल नहीं होते. उनकी सफलता दर 40 प्रतिशत से 70 प्रतिशत के बीच है. हम मानव रहित मिशन की तुलना मानव वाले मिशन से कर सकते हैं. लगभग 98 प्रतिशत मानव युक्त मिशन सफल होते हैं, क्योंकि अंतरिक्ष यात्रियों से युक्त मिशन की मदद के लिए पृथ्वी पर काम करने वाले वैज्ञानिक अधिक ध्यान केंद्रित करके काम करेंगे. उनके लिए प्रबंधन अधिक संसाधनों का निवेश करेगा और उनकी सुरक्षा की प्राथमिकता के मद्देनजर देरी को स्वीकार किया जाएगा.</p>
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