
न्यूज डेस्क, अमर उजाला, नई दिल्ली Updated Thu, 15 Aug 2019 08:43 PM IST
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी – फोटो : एएनआई
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आजादी के बाद जवाहर लाल नेहरू ने सैन्य बलों का विकेंद्रीकरण कर दिया था, जिससे यह पद समाप्त हो गया था। उसके बाद पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 1998 में भारत में राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार का पद सृजित किया और ब्रजेश मिश्रा भारत के पहले सुरक्षा सलाहकार हुए।
एनएसए एक आईपीएस या आईएफएस अधिकारी होता है जबकि सीडीएस एक वरिष्ठ सैन्य अधिकारी होगा। देखा जाए तो एनएसए और सीडीएस की भूमिका और जिम्मेदारियां लगभग एक समान है। ऐसे में देखने वाली बात ये सरकार किसकी वरिष्ठता तय करेगी या दोनों पदों को समान रखा जाएगा।
साल 1998 में एक टास्क फोर्स की सिफारिश पर वाजपेयी सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर तीन स्तरीय ढांचा तैयार किया था। जिसके अनुसार राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की नियुक्ति प्रधानमंत्री को देश के आंतरिक और बाहरी खतरों से संबंधित सभी मामलों में सलाह देने के लिए की जाती है। इसके अलावा पडोसी देशों के साथ सीमा मुद्दों, विदेश की खुफिया एजेंसियों के बीच गुप्त और खुले ऑपरेशन, देश के ऊपर आने वाले किसी भी संभावित खतरे से निपटने की रणनीति बनाने का दायित्व भी एनएसए का ही होता है।
अगर भारत को किसी देश पर न्यूक्लियर हमला करना हो तो इस स्थिति में प्रधानमंत्री के अलावा एक और सीक्रेट कोड होता है जो कि देश के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के पास होता है। कुछ विशेष परिस्थितियों में एनएसए को विदेश नीति को ठीक करने के लिए भी प्रधानमंत्री की तरफ से प्रतिनिधि बनाकर विदेश भेजा जा सकता है।
वही वर्ष 2012 में नरेश चंद्रा कमेटी ने चीफ आफ डिफेंस के पद की भूमिका और जिम्मेदारियों का मसौदा तैयार किया था। जिसमें कहा गया था कि सीडीएस प्रधानमंत्री और रक्षा मंत्री के प्रमुख सैन्य सलाहकार होंगे। इसके साथ ही वे किसी भी संयुक्त सेना कार्यवाही की जानकारी प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री और सुरक्षा समिति को देंगे।
सीडीएस किसी भी कार्यवाही के लिए सेना को आदेश नहीं दे सकते, वे इसके लिए प्रधानमंत्री या रक्षा मंत्री को केवल सलाह दे सकते है। सीडीएस प्रधांनमंत्री और सुरक्षा समिति को न्यूक्लियर टारगेट की तकनीकी और रणनीतिक जानकारियों को लेकर भी राय दे सकते है। सीडीएस को सुरक्षा समिति का स्थायी सदस्य होना अनिवार्य है।